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Index अनुराधा Q,17
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१४-चन्द्रवंशका वर्णन १५-ऋचीक, जमदग्नि और परशुरामजीका चरित्र १६-परशुरामजीके द्वारा क्षत्रिय-संहार और विश्वामित्रजीके वंशकी कथा १७-क्षत्रवृद्ध, रजि आदि राजाओंके वंशका वर्णन १८-ययाति-चरित्र १९-ययातिका गृहत्याग२०-पूरुके वंश, राजा दुष्यन्त और भरतके चरित्रका वर्णन २१-भरतवंशका वर्णन, राजा रन्तिदेवकी कथा २२-पांचाल, कौरव और मगधदेशीय राजाओंके वंशका वर्णन २३-अनु, द्रुह्यु, तुर्वसु और यदुके वंशका वर्णन २४-विदर्भके वंशका वर्णन दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) १-भगवान्के द्वारा पृथ्वीको आश्वासन, वसुदेव-देवकीका विवाह और कंसके द्वारा देवकीके छः पुत्रोंकी हत्या विदर्भ वंश कौरव वंश यदुवंश भरत वंश ययाति चरित्र 1 ययाति चरित्र 2 चंद्रवंश क्षत्र वृद्धवंश विश्वामित्र वंश परशुराम चरित्र दुष्यंत विवाह
Ved स्तुति 30
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इसमें संदेह नहीं कि सब-के-सब जीव तथा इनकी एकता या विभिन्नता भगवानसे ही उत्पन्न हुई है। इसलिए भगवान उनमें कारणरूपसे रहते हुए भी उनके नियामक है।वास्तव में भगवान उनमें समरूपसे स्थित है। परंतु यह जाना नहीं जा सकता कि भगवानका वह स्वरूप कैसा है। क्योंकि जो लोग ऐसा समझते हैं कि हमने जान लिया,उन्होंने वास्तव में भगवानको नहीं जाना; उन्होंने तो केवल अपनी बुद्धि के विषय को जाना है, जिससे भगवान परे हैं। और साथ ही मति के द्वारा जितनी वस्तुएं जानी जाती है, वे मतियों की भिन्नता के कारण भिन्न-भिन्न होतीहै; इसलिए उनकी दुष्टता, एकमत के साथ दूसरे मत का विरोध,प्रत्यक्ष ही है।अतःभगवानका स्वरूप समस्त मतोंके परे है।
विश्वामित्र जी का वंश
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रेणु ऋषिकी कन्या थी रेणुका। जमदग्निने उसका पाणिग्रहण किया ।।१२।। रेणुकाके गर्भसे जमदग्नि ऋषिके वसुमान् आदि कई पुत्र हुए। उनमें सबसे छोटे परशुरामजी थे। उनका यश सारे संसारमें प्रसिद्ध है ।।१३।। कहते हैं कि हैहयवंशका अन्त करनेके लिये स्वयं भगवान्ने ही परशुरामके रूपमें अंशावतार ग्रहण किया था। उन्होंने इस पृथ्वीको इक्कीस बार क्षत्रियहीन कर दिया ।।१४।। यद्यपि क्षत्रियोंने उनका थोड़ा-सा ही अपराध किया था—फिर भी वे लोग बड़े दुष्ट, ब्राह्मणोंके अभक्त, रजोगुणी और विशेष करके तमोगुणी हो रहे थे। यही कारण था कि वे पृथ्वीके भार हो गये थे और इसीके फलस्वरूप भगवान् परशुरामने उनका नाश करके पृथ्वीका भार उतार दिया ।।१५। जमदग्नि मुनिने अपनी पत्नीका मानसिक व्यभिचार जान लिया और क्रोध करके कहा—‘मेरे पुत्रो! इस पापिनीको मार डालो।’ परन्तु उनके किसी भी पुत्रने उनकी वह आज्ञा स्वीकार नहीं की ।।५।। इसके बाद पिताकी आज्ञासे परशुरामजीने माताके साथ सब भाइयोंको भी मार डाला। इसका कारण था। वे अपने पिताजीके योग और तपस्याका प्रभाव भलीभाँति जानते थे ।।६।। परशुरामकी माता रेणुका बड़ी दीनतासे उनसे प्र
परशुराम जी का चरित्र
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एक बार महर्षि ऋचीकसे उनकी पत्नी और सास दोनोंने ही पुत्रप्राप्तिके लिये प्रार्थना की। महर्षि ऋचीकने उनकी प्रार्थना स्वीकार करके दोनोंके लिये अलग-अलग मन्त्रोंसे चरु पकाया और स्नान करनेके लिये चले गये ।।८।। सत्यवतीकी माँने यह समझकर कि ऋषिने अपनी पत्नीके लिये श्रेष्ठ चरु पकाया होगा, उससे वह चरु माँग लिया। इसपर सत्यवतीने अपना चरु तो माँको दे दिया और माँका चरु वह स्वयं खा गयी ।।९ ।। जब ऋचीक मुनिको इस बातका पता चला, तब उन्होंने अपनी पत्नी सत्यवतीसे कहा कि ‘तुमने बड़ा अनर्थ कर डाला। अब तुम्हारा पुत्र तो लोगोंको दण्ड देनेवाला घोर प्रकृतिका होगा और तुम्हारा भाई होगा एक श्रेष्ठ ब्रह्मवेत्ता ’ । ।१०।। सत्यवतीने ऋचीक मुनिको प्रसन्न किया और प्रार्थना की कि ‘स्वामी! ऐसा नहीं होना चाहिये।’ तब उन्होंने कहा—‘अच्छी बात है। पुत्रके बदले तुम्हारा पौत्र वैसा (घोर प्रकृतिका) होगा।’ समयपर सत्यवतीके गर्भसे जमदग्निका जन्म हुआ ।।११।। पुत्रके बदले तुम्हारा पौत्र वैसा (घोर प्रकृतिका) होगा।’ समयपर सत्यवतीके गर्भसे जमदग्निका जन्म हुआ ।।११। रेणु ऋषिकी कन्या थी रेणुका। जमदग्निने उसका पाणिग्रह
14.चंद्र वंश का वर्णन
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सहस्त्रों सिर वाले विराट पुरुष नारायण की नाभि सरोवर के कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा जी के पुत्र हुए अत्री। वे अपने गुणों के कारण ब्रह्मा जी के समान ही थे।2 त्रेता के पूर्व सत्य युग में एकमात्र प्रणव (ॐ कार) ही वेद था। सारे वेद-शास्त्र उसी के अंतर्भूत थे। देवता थे एकमात्र नारायण; और कोई न था। अग्नि भी तीन नहीं, केवल एक था और वरुण भी केवल एक "हंस"ही था। भागवत महापुराण स्कंद 9 अध्याय 14 श्लोक 48.