Ved स्तुति 30

इसमें संदेह नहीं कि सब-के-सब जीव तथा इनकी एकता या विभिन्नता भगवानसे ही उत्पन्न हुई है। इसलिए भगवान उनमें कारणरूपसे रहते हुए भी उनके नियामक है।वास्तव में भगवान उनमें समरूपसे स्थित है। परंतु यह जाना नहीं जा सकता कि भगवानका वह स्वरूप कैसा है।

क्योंकि जो लोग ऐसा समझते हैं कि हमने जान लिया,उन्होंने वास्तव में भगवानको नहीं जाना; उन्होंने तो केवल अपनी बुद्धि के विषय को जाना है, जिससे भगवान परे हैं।

और साथ ही मति के द्वारा जितनी वस्तुएं जानी जाती है, वे मतियों की भिन्नता के कारण भिन्न-भिन्न होतीहै; इसलिए उनकी दुष्टता, एकमत के साथ दूसरे मत का विरोध,प्रत्यक्ष ही है।अतःभगवानका स्वरूप समस्त मतोंके परे है।

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